शयन भोग के पद एवं भजन
* शयन भोग के पद *
भोजन बिहारीलाल कौ सो तौ मैं जानी।
दरसन प्यारी रूप कौ पुतरिन रुचिमानी॥
प्यारे की मृदु मुसकनि मीठी लगैं भौंहनि कटुताई।
षट्रस वारों कोटि लौं दृग चंचलताई॥
प्यारे कों चाह छिन-छिन चौगुनी जैंमत रुचि ज्यौंही।
अलि भगवान जुगल्र रस वरन्यों जात न त्यौंहि॥1॥
भोजन करत दुहूँ दिशि देखों।
कहत न बनत विनोद बिहारी बिहारिन लै उर लेखों॥
अंग-अंग अवलोकि लेत दोउ छुधित स्वाद की शेखों।
वचन रचन रुचि में रुचि पावत सब रस रसिक विशेखों॥
पान करत मकरन्द पिया पिय अवधि प्रेम की रेखों।
यहि आहार-बिहार निरन्तर करत न पाक परेखों॥
यह रस तुष्ट-पुष्ट मेरे प्यारे तुम सुन्दर वर वेषों।
श्रीबिहारिनदास कहत नैनन सों तुम जिन लगौ निमेषों॥2॥
हँसि-हँसि दूध पीवत बाल।
मधुर-मधुर सौं सुवासित रुचिर परम रसाल॥
भ्रूभंग रंग अनंग बिथकित चितै मोहन ओर।
सुधानिधि मानों प्रेम धारा पोषत तृषित चकोर॥
(प्यारी) लाल रस सम्पट सुधर अचवाय मुख छवि हेर।
पिवत तब अवशेष आपुन परे है मन्मथ केर॥
रीझि-रीझि सराह स्वाद जु दियो निज सखि बान।
पाय अद्भुत अमृत सुख सखि हरषि वारत प्रान॥3॥
कोउ रसिक स्याम रस पीवैगौ, पीवैगौ सोई जीवैगौ।
पीवैगौ सोई फ़ूलैगौ, तन-मन देखि न भूलैगौ॥
पीवैगौ सोई नाचैगौ, साधु संग मिलि राचैगौ।
चाखैगौ सोई जानैगौ, कहने कौन पत्यानैगौ॥
व्यासदास जिय भावैगौ, तब महल खवासी पावैगौ।
श्रीव्यासदास उर आवैगै, तब अंग खवासी पावैगौ॥4॥
* आचमन *
भोजन करि बैठे दुलहिन दूलहु।
अचमन करत कमल आनन सखि-निरख-निरख छबि फ़ूलहु॥
बीरी परस्पर लेत खबावत रूप वेश सम तूलहु।
दासबिहारिन विपुल रसिकवर श्रीहरिदासी सम्पति रसझूलहु॥5॥
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श्रीबिहारीलाल बाँकुरौ बिराजै।
सोहत सहज सिंगार प्रिया उर छिन-छिन प्रति रति साजै॥
उपमा कोटि करें न्यौछावर इनहिं निरखि निपटि छबि छाजै॥
श्रीबिहारीदास श्रीहरिदास विपुल बल गाई गूढ़ गुन गाजै॥6॥
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राजत रंग भरे रति नैना उनींदे री शोभा देत।
संकुचित कुचि विकसित सखी री अरुन असितसेत॥
मानों अम्बुज पर जुग पुतरी अटके अलि संकेत।
अति रस लोभी तज न सकत हँसत सुरत हेत॥
सब सुख सुचित अति अनुरागे जागे श्याम सहेत।
(श्री) बिहारीदास अंग-संग मनोहर मन हर लेत॥7॥
*भजन*
श्री ललिता बीरी बनावै खवाबै हो।
हाथ लिये कंचन की थाली रमक झमक चलि आवै हो॥
हास विनोद परस्पर दोऊ नाना ख्याल खिलावै हो।
जिनके संग प्यारी अरु प्रीतम रुचि में सुरुचि उपजावै हो।
गुनतौ धनौ छैल श्रीबिहारीजू माखनचोरी यह औगुन एक।
नौ लख धेनु नन्द बाबा घर तौऊ न छोड़ी अपनी टेक॥
मो से पतित अनेकन तारे, तुम सौ छैल प्रभु एक।
ब्रजनिधि अरजी सुनौ जू हमारी पाप रहें नहिं एक॥8॥
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लगी रट राधा, श्री राधा, श्री राधा नाम।
ढूँढ़ फ़िरी वृन्दावन सगरौ, नन्द ढिठौना श्याम॥
कै मन मोहन खोर साँकरी कै मोहन नन्दगाम।
श्रीव्यासदास की जीवन राधा धन बरसानौ गाम॥9॥
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देखौ री या मुकुट की लटकन।
रास किये निरतत राधे संग, नूपुर काँत पायल की पटकन॥
पीताम्बर छूट जाय छिनहिं छिन बैजन्ती बेसर की अटकन।
सूर श्याम की या छबि ऊपर झूठो ज्ञान योग में भटकन॥10॥
*शयन का पद*
कुंजन पधारौ राधे रंग भरी रैंन।
रंग भरी दुलहिन रंग भरे पीया स्यामसुन्दर सुख दैंन॥
रंग भरी सेज रची सुख सहचरि रंग भरयौ उलहत मैंन।
रसिकबिहारी पिया मिलि दोऊ करहू सेज सुख सैंन॥
कुंजन ते उठि प्रात गात जमुना में धोबैं।
निधिवन कर दण्डौत श्रीबिहारी मुख जोबैं॥