पापकुंषा एकादशी

papakunsha-ekadashiइस एकादशी के दिन मनोवांछित फल कि प्राप्ति के लिये श्री विष्णु भगवान कि पूजा की जाती है. इस एकादशी के पूजने से व्यक्ति को स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है. जो मनुष्य कठिन तपस्याओं के द्वारा फल प्राप्त करते है. वही फल एक एकादशी के दिन क्षीर -सागर में शेषनाग पर शयन करने वाले श्री विष्णु को नमस्कार कर देने से ही मिल जाते है. और मनुष्य को यमलोक के दु:ख नहीं भोगने पडते है.

पापाकुंशा एकादशी के फलों के विषय में कहा गया है, कि हजार अश्वमेघ और सौ सूर्ययज्ञ करने के फल,इस एकादशी के फल के सोलहवें, हिस्से के बराबर भी नहीं होता है. अर्थात इस एकादशी व्रत के समान अन्य कोई व्रत नहीं है. इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को स्वस्थ शरीर और सुन्दर जीवन साथी की प्राप्ति होती है.

इसके अतिरिक्त जो व्यक्ति इस एकादशी की रात्रि में जागरण करता है, उन्हें, बिना किसी रोक के स्वर्ग मिलता है. यह एकाद्शी उपवासक के मातृपक्ष के दस और पितृपक्ष के दस पितरों को विष्णु लोक लेकर जाती है. इस एकादशी के दिन भूमि, गौ, अन्न, जल, वस्त्र और छत्र आदि का दान करता है, उन्हें यमराज के दर्शन नहीं मिलते है. इसके अलावा जो व्यक्ति तालाब, बगीचा, धर्मशाला, प्याऊ, अन्न क्षेत्र आदि बनवाते है, उन्हें पुन्य फलों की प्राप्ति होती है. धर्म करने वाले को सभी सुख मिलते है.

विन्ध्यपर्वत पर महा क्रुर और अत्यधिक क्रोधन नामक एक बहेलिया रहता था. उसने बुरे कार्य करने में सारा जीवन बीता दिया. जीवन के अंतिम भाग आने पर यमराज ने उसे अपने दरबार में लाने की आज्ञा दी. दूतोण ने यह बात उसे समय से पूर्व ही बता दी. मृ्त्युभय से डरकर वह अंगिरा ऋषि के आश्रम में गया. और यमलोक में जाना न पडे इसकी विनती करने लगा.

अंगिरा ऋषि ने उसे आश्चिन मास कि शुक्ल पक्ष कि एकादशी के दिन श्री विष्णु जी का पूजन करने की सलाह दी़. इस एकादशी का पूजन और व्रत करने से वह अपने सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को गया.