मोक्षदा एकादशी

mokshada-ekadashiमार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है. इसी दिन भगवान श्री कृ्ष्ण ने महाभारत के प्रारम्भ होने से पूर्व अर्जुन को श्रीमद भगवतगीता का उपदेश दिया था. इस दिन श्री कृ्ष्ण व गीता का पूजन करना चाहिए. इसके बाद आरती करके उसका पाठ करना चाहिए. मोक्षदा एकाद्शी को दक्षिण भारत में वैकुण्ठ एकादशी के नाम से भी जाना जता है.

गीता में भगवान श्री कृ्ष्ण ने कर्मयोग पर विशेष बल दिया है. ब्राह्राण भोजन कराकर दान आदि कार्य करने से विशेष फल प्राप्त होते है. मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी अनेकों पापों को नष्ट करने वाली है. यह एकादशी मोक्षदा के नाम से प्रसिद्ध है. इस दिन भगवान श्री दामोदर की पूजा, धूप, दीप नैवेद्ध आदि से भक्ति पूर्वक करनी चाहिए.

मोक्षदा एकादशी व्रत को करने से व्यक्ति के पूर्वज जो नरक में चले गये है, उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है. इसकी कथा इस प्रकार है. प्राचीन गोकुल नगर में वैखानस नाम का एक राजा राज्य करता था. उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्माण रहते थे. एक रात्रि को स्वप्न में राजा ने अपने पिता को नर्क मे पडा देखा, अपने पिता को इस प्रकार देख कर उसे बहुत दु:ख हुआ.

प्रात:काल होते ही वह ब्राह्माणों के सामने अपनी स्वप्न कथा कहने लगा. अपने पिता को इस प्रकार देख कर मुझे सभी ऎश्वर्य व्यर्थ महसूस हो रही है. आप लोग मुझे किसी प्रकार का तप,दान, व्रत आदि बताएं, जिससे मेरे पिता को मुक्ति प्राप्त हों. राजा के ऎसे वचन सुनकर ब्राह्माण बोले, यहां समीप ही एक भूत-भविष्य के ज्ञाता एक “पर्वत” नाम के मुनि है. आप उनके पास जाईए, वे आपको इसके बारे में बतायेगें.

राजा ऎसा सुनकर मुनि के आश्रम पर गए़ उस आश्रम में अनेकों मुनि शान्त होकर तपस्या कर रहे थे. राजा ने जाकर ऋषि को प्रणाम करके बताया कि अकस्मात एक विध्न आ गया है. यह सुनकर मुनि ने आंखे बंद कर ली. और कुछ देर बाद मुनि बोले कि आपके पिता ने अपने पिछले जन्म में एक दुष्कर्म किया था. उसी पाप कर्म के फल से तुम्हारा पिता नर्क में गए है.

यह सुनकर राजा ने अपने पिता के उद्वार की प्रार्थना ऋषि से की. मुनि राजा की विनती पर बोले की मार्गशीर्ष मसके शुक्ल पक्ष में जो एकादशी होती है. उस एकादशि का आप उपवास करें. उस एकादशी के पुन्य के प्रभाव से ही आपके पिता को मुक्ति मिलेगी. मुनि के वचनों को सुनकर उसने अपने कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का उपवास किया. उस उपवास के पुन्य को राजा ने अपने पिता को दे दिया. उस पुन्य के प्रभाव से राजा के पिता को मुक्ति मिल गई. और वे स्वर्ग में जाते हुए अपने पुत्र से बोले, हे पुत्र तुम्हारा कल्याण हों, यह कहकर वे स्वर्ग चले गए.