कामदा एकादशी

kamada-ekadashiपुराने समय में पुण्डरीक नामक राजा था, उसकी भोगिनीपुर नाम कि नगरी थी. उसके खजाने सोने चांदी से भरे रह्ते थे. वहां पर अनेक अप्सरा, गंधर्व आदि वास करते थें. उसी जगह ललिता और ललित नाम के स्त्री-पुरुष अत्यन्त वैभवशाली घर में निवास करते थें. उन दोनों का एक-दूसरे से बहुत अधिक प्रेम था. कुछ समय ही दूर रहने से दोनों व्याकुल हो जाते थें.

एक समय राजा पुंडरिक गंधर्व सहित सभा में शोभायमान थे. उस जगह ललित गंधर्व भी उनके साथ गाना गा रहा था. उसकी प्रियतमा ललिता उस जगह पर नहीं थी. इससे ललित उसको याद करने लगा. ध्यान हटने से उसके गाने की लय टूट गई. यह देख कर राजा को क्रोध आ गया. ओर राजा पुंडरीक ने उसे श्राप दे दिया. मेरे सामने गाते हुए भी तू अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है. जा तू अभी से राक्षस हो जा, अपने कर्म के फल अब तू भोगेगा.

राजा पुण्डरीक के श्राप से वह ललित गंधर्व उसी समय विकराल राक्षस हो गया, उसका मुख भयानक हो गया. उसके नेत्र सूर्य, चन्द्र के समान लाल होने लगें. मुँह से अग्नि निकलने लगी. उसकी नाक पर्वत की कन्दरा के समान विशाल हो गई. और गर्दन पहाड के समान लगने लगी. उसके सिर के बाल पर्वत पर उगने वाले वृ्क्षों के समान दिखाई देने लगे़. उस की भुजायें, दो-दो योजन लम्बी हो गई. इस तरह उसका आठ योजन लम्बा शरीर हो गया. राक्षस हो जाने पर उसकों महान दु:ख मिलने लगा और अपने कर्म का फल वह भोगने लगा.

अपने प्रियतम का जब ललिता ने यह हाल देख तो वह बहुत दु;खी हुई. अपने पति के उद्वार करने के लिये वह विचार करने लगी. एक दिन वह अपने पति के पीछे घूमते-घूमते विन्धाजल पर्वत पर चली गई. उसने उस जगह पर एक ऋषि का आश्रम देखा. वह शीघ्र ही उस ऋषि के सम्मुख गई. और ऋषि से विनती करने लगी.

उसे देख कर ऋषि बोले की हे कन्या तुम कौन हो, और यहां किसलिये आई हों, ललिता बोली, हे मुनि, मैं गंधर्व कन्या ललिता हूं, मेरा पति राजा पुण्डरीक के श्राप से एक भयानक राक्षस हो गया है. इस कारण मैं बहुत दु:खी हूं. मेरे पति के उद्वार का कोई उपाय बताईये.

इस पर ऋषि बोले की हे, गंधर्व कन्या शीघ्र ही चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी आने वाली है. उस एकादशी के व्रत का पालन करने से, तुम्हारे पति को इस श्राप से मुक्ति मिलेगी. मुनि की यह बात सुनकर, ललिता ने आनन्द पूर्वक उसका पालन किया. और द्वादशी के दिन ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को दे दिया, और भगवान से प्रार्थना करने लगी.

हे प्रभो, मैनें जो यह व्रत किया है, उसका फल मेरे पति को मिलें, जिससे वह इस श्राप से मुक्त हों. एकादशी का फल प्राप्त होते ही, उसका पति राक्षस योनि से छुट गया. और अपने पुराने रुप में वापस आ गया. इस प्रकार इस वर को करने से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते है