अचला एकादशी

achala-ekadashi
ज्येष्ठ मासके कृ्ष्ण पक्ष की एकादशी अपरा एकादशी या अचला एकादशी के नाम से जानी जाती है. इस व्रत को करने से ब्रह्माहत्या, परनिन्दा, भूत योनि आदि जैसे बुरे कर्मों से छुटकारा मिलता है. इसके करने से कीर्ति, पुन्य तथा धन में अभिवृ्द्धि होती है.

अपरा एकादशी व्रत करने से व्यक्ति को अपार धन वृ्द्धि देती है. यह एकादशी पुण्यों को देने वाली और पापों को नष्ट करने वाली है. जो मनुष्य़ इस व्रत को करता है. उसकी इस लोक में प्रसिद्ध होती है. अपरा एकादशी के प्रभाव से ब्रह्मा हत्या जैसे पाप नष्ट होते है, झूठी गवाही, असत्य भाषण, झूठा वेद पढना, झूठा शास्त्र बनाना आदि सभी के पाप नष्ट होते है.

जो फल तीनों पुष्करों में स्नान करने से या कार्तिक मास में स्नान करने से अथवा गंगाजी के तट पर पितरों को पिंड दान करने से मिलता है. वह फल अपरा एकाद्शी का व्रत करने से मिलता है. सिंह राशि के व्यक्तियोम को वृ्हस्पति वार के दिन गोमती में स्नान, करने से कुम्भ में श्री केदारनाथ जी के दर्शन करने से तथा बद्रिकाश्रम में रहने से तथा सूर्य-चन्द्र ग्रहण में कुरुक्षेत्र में स्नान करने से जो फल मिलता है. वही फ अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है.

इसके अतिरिक्त जो फल हाथी घोडे के दान, यज्ञ करने , स्वर्ण दान करने से जो फल मिलता है. वह फल अपरा एकादशी का व्रत करने से मिलता है. गौ व भूमि स्वर्ण के दान का फल भी इसके फल के बराबर होता है. अपरा का व्रत पाप रुपी अन्धकार के लिये सूर्य के समान है. इसलिये जहां तक हो सके प्रत्येक व्यक्ति को इस व्रत को करने का प्रयास करना चाहिए.

अपरा एकादशी व्रत करने की विधि अन्य एकादशी के व्रतों कि विधि के समान ही होती है. इस व्रत की अवधि 24 घंटों से अधिक होती है. इस व्रत का प्रारम्भ दशमी तिथि से ही किया जाता है. दशमी तिथि से ही भोजन और आचार-विचार में संयम रखना चाहिए. रात्रि में भूमि पर शयन कर, सात्विक विचार मन में लाने चाहिए. तथा वैवाहिक जीवन में ब्रहाचार्य का पालन करना चाहिए.

एकादशी तिथि में प्रात: काल में जल्द उठना चाहिए. अन्य क्रियाओं से निवृ्त होकर स्नान आदि कर, व्रत का संकल्प लेना चाहिए. और श्री विष्णु की पूजा करनी चाहिए. पूरे दिन व्रत कर सांय काल में फल आदि से भगवान को भोग लगा कर, श्री विष्णु जी की पूजा धूप, दीप और फूलों से करनी चाहिए. एकादशी व्रत में रात्रि में विष्णु जी का पाठ करते हुए जागरण किया जाता है.

एक बार की बात है, महिध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था. जिसके छोटा भाई बज्रध्वज बडा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था. वह अपने बडे भाई से बडा द्वेष रखता था. साथ ही वह स्वभाव से अवसरावादी था. एक रात्रि उसने अपने बडे भाई की हत्या कर दी. और देह को पीपल के पेड के नीचे गाड़ दिया. मृ्त्यु के उपरान्त वह पीपल के वृ्क्ष पर उत्पात करने लगा. अकस्मात एक दिन धौम्य नामक ऋषि उधर से गुजरा. उन्होने तपोबल से पीपल एक पेड से नीचे उतारा. और विधा का उपदेश दिया. और प्रेत्मात्मा से मुक्ति के लिये उसे अपरा एकादशी व्रत करने का मार्ग दिखाया.