योगिनी एकादशी

yogini-ekadashi
योगिनी एकादशी व्रत आषाढ मास के कृ्ष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है. इस दिन व्रत करके भगवान नारायण की मूर्ति को स्नान कराकर भोग लगाते है. इसके बाद पुष्प, धूप, दीप से आरती उतारनी चाहिए. गरीब ब्राह्माणों को दान देना कल्याणकारी रहता है. इस एकादशी के दिन पीपल के पेड की पूजा करने से सभी पाप नष्ट होते है. और उपवासक को अंत में स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है.

आषाढ मास के कृ्ष्ण पक्ष की एकादशी योगिनी एकादशी कहलाती है. इस व्रत को करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते है. और इस लोक में तथा परलोक में व्यक्ति को मुक्ति प्राप्त होती है. इस एकादशी का महत्व तीनों लोकों में प्रसिद्ध है.योगिनी एकादशी व्रत करने से पहले की रात्रि में ही व्रत एक नियम शुरु हो जाते है. दशमी तिथि की रात्रि में ही व्यक्ति को जौं, गेहूं और मूंग की दाल जैसे तामसिक प्रकृ्ति के भोजन नहीं ग्रहण करने चाहिए.

इसके अतिरिक्त व्रत के दिन क्योकि नमक युक्त भोजन नहीं किया जाता है. इसलिये दशमी तिथि की रात्रि में नमक का सेवन नहीं करना चाहिए. व्रत दशमी तिथि कि रात्रि से शुरु होकर द्वादशी तिथि के प्रात:काल में दान कार्यो के बाद समाप्त होता है.

एकादशी तिथि के दिन प्रात: स्नान आदि कार्यो के बाद, व्रत का संकल्प लिया जाता है. स्नान करने के लिये मिट्टी का प्रयोग करना शुभ रहता है. इसके अतिरिक्त स्नान के लिये तिल के लेप का प्रयोग भी किया जा सकता है. स्नान करने के बाद कुम्भ स्थापना की जाती है, कुम्भ के ऊपर श्री विष्णु जी कि प्रतिमा रख कर पूजा की जाती है. और धूप, दीप से पूजन किया जाता है. व्रत की रात्रि में जागरण करना चाहिए.

अलकापुरी नाम की नगरी में एक कुबेर नाम का राजा राज्य करता था. वह शिव जी का परम भक्त था. पूजा में वह फूलों का प्रयोग करता था. और उसकी पूजा के लिये हेममाली फूल लाता है. हेममाली की विशालाक्षी नाम की उसकी सुन्दर स्त्री थी. एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प आने के बाद पूजा कार्य में न लग कर, अपनी स्त्री के साथ रमण करने लगा. जब राजा कुबेर को उसकी राह देखते -देखते दोपहर हो गई. तो उसने क्रोधपूर्वक अपने सेवकों को आज्ञा दी.

“तुम जाकर हेममाली का पता लगाओं”, कि वह अभी फूल लेकर क्यों नहीं आया है? जब यक्षों ने उसका पता लगा लिया, तो वह कुबेर के पास जाकर कहने लगे, हे राजन, वह माली अभी तक अपनी स्त्री के साथ रमण कर रहा है. यज्ञों की बात सुन्कर कुबेर ने हेममाली को बुलाने की आज्ञा दी. हेममाली राजा कुबेर के सम्मुख जाकर डर से कांपता हुआ उपस्थित हुआ.

तुमने समय पर पुष्प न ला कर, मेरे परम पूजनीय देव भगवान शिव का अपमान किया है. मैं तुझे श्राप देता हूं, कि तू स्त्री का वियोग भोगेगा. और मृ्त्यु लोग में जाकर कोढी हो जायेगा. कुबेर के श्राप से वह उसी क्षण स्वर्ग से पृ्थ्वी लोक पर आ गिरा. और कोढी हो गया. उसकी स्त्री भी उसी समय उससे बिछुड गई. मृ्त्युलोक में आकर उसने महा दु;ख भोगे.

परन्तु शिव जी की भक्ति के प्रभाव से उनकी बुद्धि मलीन न हुइ और पिछले जन्म के कर्मों का स्मरण करते हुए. वह हिमालय पर्वत की तरफ चल दिया. वहां पर चलते -चलते उसे एक ऋषि मिले. ऋषि के आश्रम में पहुंच गया. वे ऋषि बहुत तपशाली थे. उस समय वे दूसरे ब्रह्मा के समान प्रतीत हो रहे थें. हेममाली वहां गया और उनको प्रणाम करके उनके चरणों में गिर पडा.

उसे देख कर ऋषि बोले के तुमने क्या बुरा कार्य किया है, जो तुम्हारी आज यह दशा है. इस पर हेममाली ने अपनी सारी व्यथा ऋषि को सुना दी. यह सब सुनकर ऋषि ने कहा की तुमने मेरे सम्मुख सत्य कहें है, इसलिये मैं तुम्हारे उद्वार में तुम्हारी सहायता करूंगा. तुम आषाढ मास के कृ्ष्ण पक्ष की योगिनी नामक एकादशी का विधि-पूर्वक व्रत करों. तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जायेगें. इस पर हेममाली बहुत प्रसन्न हुआ. और मुनि के वचनों के अनुसार योगिनी एकाद्शी का व्रत किया. इसके प्रभाव से वह फिर से अपने पुराने रुप में वापस आ गया. और अपनी स्त्री के साथ प्रसन्न पूर्वक रहने लगा.

योगिनी व्रत की कथा श्रवण का फल अट्ठासी सहस्त्र ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर है. इसके व्रत से समस्त पाप दूर होते है.