जन्माष्टमी

janmashtamiद्वापर युग के अंतिम चरण में भाद्रपद माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था. इसी कारण शास्त्रों में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी के दिन अर्द्धरात्रि में श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी मनाने का उल्लेख मिलता है. पुराणों में इस दिन व्रत रखने को बेहद अहम बताया गया है.

श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी की मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी व श्रीवसुदेव के पुत्र रूप में हुआ था. कंस ने अपनी मृत्यु के भय से अपनी बहन देवकी और वसुदेव को कारागार में कैद किया हुआ था. कृष्ण जी के जन्म के समय घनघोर वर्षा हो रही थी. चारो तरफ़ घना अंधकार छाया हुआ था. भगवान के निर्देशानुसार कुष्ण जी को रात में ही मथुरा के कारागार से गोकुल में नंद बाबा के घर ले जाया गया.

नन्द जी की पत्नी यशोदा को एक कन्या हुई थी. वासुदेव श्रीकृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर उस कन्या को अपने साथ ले गए. कंस ने उस कन्या को वासुदेव और देवकी की संतान समझ पटककर मार डालना चाहा लेकिन वह इस कार्य में असफल ही रहा. दैवयोग से वह कन्या जीवित बच गई. इसके बाद श्रीकृष्ण का लालन–पालन यशोदा व नन्दबाबा ने किया. जब श्रीकृष्ण जी बड़े हुए तो उन्होंने कंस का वध कर अपने माता-पिता को उसकी कैद से मुक्त कराया.

बाँके बिहारी मंदिर में यह उत्सव पूरे उल्लास एवं उत्साह से मनाया जाता है| मंदिर को फूलों और रोशनी से सजाया जाता है| बाँके बिहारी जी का अर्द्ध-रात्रि में अभिषेक किया जाता है| अभिषेक के बाद 2 बजे दर्शन के लिए पट खोले जाते है| इसके बाद बिहारी जी की मंगला-आरती होती है| यह आरती वर्ष में केवल एक बार जन्माष्टमी के दिन ही होती है|

इस पवित्र रात्रि के बाद नन्दोत्सव शुरू होता है| नन्दोत्सव में खिलौने कपड़े इत्यादि भक्तों को बाँटे जाते है| इस उत्सव को मनाने के लिए पूरे उत्तर-भारत में भजन और शास्त्रीय संगीत आयोजित किये जाते है| काफी स्थानों पर श्री कृष्ण का श्री राधा-रानी के प्रति सच्चा प्रेम प्रदर्शित करने के लिए रास-लीलायें भी आयोजित की जाती है|

नन्द घर आनंद भये |
जय कन्हैया लाल की ||
हाथी दीने घोड़ा दीने और दीनी पालकी |