माई री, सहज जोरी प्रगट भई

माई री, सहज जोरी प्रगट भई, जु रंग की गौर-स्याम घन-दामिनि जैसैं।
प्रथम हूँ हुती, अब हूँ आगें हूँ रहिहै, न टरिहै तैसैं॥
अंग-अंग की उजराई-सुघराई-चतुराई-सुन्दरता ऐसैं।
श्रीहरिदास के स्वामी स्यामा-कुंजबिहारी, सम वैस वैसैं॥1॥ [राग कान्हरौ]