प्यारी तेरौ बदन अमृत की पंक, तामैं बींधे नैन द्वै।

प्यारी तेरौ बदन अमृत की पंक, तामैं बींधे नैन द्वै।
चित चल्यौ काढ़न कौं, बिकुच संधि संपुट में रह्यौ भ्वै॥
बहुत उपाइ आहि री प्यारी, पै न करत स्वै।
श्रीहरिदास के स्वामी स्यामा-कुंजबिहारी ऐसैं ही रह्यौ ह्वै॥7॥ [राग कान्हरौ]